जिले के बड़े क्षेत्र में भूजल खारा है। यह जानते हुए भी किसान भूजल का उपयोग खेती के लिए कर रहे हैं। यह अत्यंत घातक प्रवृत्ति है। बजाय नमकीन भूजल के उपयोग के किसानों को चाहिए कि वे ऐसी फसलें उगाएं जिनमें कम पानी से काम चल जाता है। ग्वार, जौ व सरसों इस तरह की फसलें हैं। यह कहना है कि प्रगतिशील किसान और बीजों के उत्पादन में खासा नाम कमाने वाले शमशेर सिंह संधु का। वे सामुदायिक रेडियो के कार्यक्रम हैलो सिरसा में केंद्र निदेशक वीरेंद्र सिंह चौहान के साथ क्षेत्र के लोगों से रूबरू हो रहे थे। जिले कें मठदादू निवासी संधू ने पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ़ से स्नातक की उपाधि प्राप्त करने के बाद आधुनिक तौर तरीके अपनाकर खेती का कार्य प्रारंभ किया था। उन्होंने किसानों को जैविक खेती का रास्ता अपनाने और फसल चक्र अपनाने का भी आवाहन किया। उन्होंने किसानों को खेती से संबंधित पत्र पत्रिकां पढने और रेडियो व टेलीविजन के कृषि कार्यक्रमों से जुडने की सलाह भी दी। इसी प्रकार सभी किसानों को चाहिए की वे खेती का प्रशिक्षण लें व खेती के क्षेत्र को प्राचीन समय का तरह खुशहाल बनाऐं। प्रस्तुत है इस बातीत के संपादित अंशः
सत्तर के दशक के अंत में ग्रेजुएशन करने के बाद खेती में आने का मन क्या बना?
ग्रेजुएशन के बाद अन्य नौजवानों की तरह मेरी भी सरकारी नौकरी पाने की इच्छा थी। परन्तु मैं एक अच्छे स्तर की नौकरी पाना चाहता था तथा मेरी यह इच्छा परवान न हो पाई। तत्पश्चात मैंने खेती में आना ही मुनासिब समक्षा। उस समय मेरे पिता जी बहुत ही सफल किसानों की श्रेणी में आते थे और मेरे दोनों भाई भी अपनी शिक्षा पूर्ण करने के बाद खेती में ही अपना हाथ अजमा रहे थे। आरंभ से ही मेरी रूची नई किस्म की खेती में रही जिस कारण मैंने खेती में नए-नए प्रयोग करने आरंभ किए। मेरे पिता जी एवं एक साथी ए.डी.ओ. साहिब इस क्षेत्र में मेरे आर्दश के रूप में सामने आए।
क्या वास्तव में ही आज के युग में खेती मुनाफादायक नहीं रही?
आज किसान के खरीदने वाली वस्तुएं बहुत महंगी हो गई हैं। इस तकनीकी एवं विकासशील युग में मशीनरी के बिना खेती असंभव है और डीजल की कीमतें आसमान को छूती जा रही है। सत्तर के दशक की डीजल की कीमतों व आज फसल के खरीद के दामों में बहुत अंतर आ गया है। इतनी महंगाई के दौर में फसलों के उचित मूल्यों का न मिलना ही किसानों के लिए गहरी चिंता काविषय है। मगर इस का अर्थ यह नहीं कि खेती से मुनाफा कमाना संभव नहीं है। आवश्यकता है कि किसान खेती को वैज्ञानिक व आधुनिक तरीके से करें।
कम पानी के प्रयोग द्वारा उन्नत खेती कैसे की जा सकती है?
पानी की किल्लत क्षेत्रिय नहीं अपितु एक वैश्विक समस्या है। आज सभी नदियां सूखती जा रही हैं। मौसम में भी वर्षा की अत्याधिक कमी आ गई है। इसलिए किसानों को चाहिए की वे क्षेत्रानुसार संतुलन बनाकर अलग अलग स्थानों पर भिन्न-भिन्न मात्रा में पानी के प्रयोग वाली फसलें लगाएं। फसलों में विविधता के द्वारा ही पानी की कमी की समस्या से निजात पाया जा सकता है।
खेती को बेहतर बनाने के लिए किसान को किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
सर्वप्रथम तो यह अति आवश्यक है कि किसान अपने नजदीकी खेती-बाड़ी विश्वविद्यालय से प्रशिक्षण लें। रबी और खरीफ के मेलों में भी किसानों को अवश्य जाना चाहिए। इससे वे नए किस्म के बीजों व तौर तरीकों से अवगत हो सकेंगे। समाचार पत्रों व अनेक पत्रिकाओं में विभिन्न नाम से किसान साहित्य प्रकाशित होता है। उसे भी जरूर पढना चाहिए। रेडियो स्टेशन व टी. वी. चौनल पर भी खेती संबधित अनेक कार्यक्रम आते हैं। जिन्हें देख या सुन कर किसान नई किस्म की खेती
का लाभ उठा सकते हैं। सरकार द्वारा प्रत्येक जिले में कृषि विज्ञान केन्द्र स्थापित किए गए हैं ताकि किसान यहां से भी अपनी समस्याओं का समाधान पा सकते हैं।
सत्तर के दशक के अंत में ग्रेजुएशन करने के बाद खेती में आने का मन क्या बना?
ग्रेजुएशन के बाद अन्य नौजवानों की तरह मेरी भी सरकारी नौकरी पाने की इच्छा थी। परन्तु मैं एक अच्छे स्तर की नौकरी पाना चाहता था तथा मेरी यह इच्छा परवान न हो पाई। तत्पश्चात मैंने खेती में आना ही मुनासिब समक्षा। उस समय मेरे पिता जी बहुत ही सफल किसानों की श्रेणी में आते थे और मेरे दोनों भाई भी अपनी शिक्षा पूर्ण करने के बाद खेती में ही अपना हाथ अजमा रहे थे। आरंभ से ही मेरी रूची नई किस्म की खेती में रही जिस कारण मैंने खेती में नए-नए प्रयोग करने आरंभ किए। मेरे पिता जी एवं एक साथी ए.डी.ओ. साहिब इस क्षेत्र में मेरे आर्दश के रूप में सामने आए।
क्या वास्तव में ही आज के युग में खेती मुनाफादायक नहीं रही?
आज किसान के खरीदने वाली वस्तुएं बहुत महंगी हो गई हैं। इस तकनीकी एवं विकासशील युग में मशीनरी के बिना खेती असंभव है और डीजल की कीमतें आसमान को छूती जा रही है। सत्तर के दशक की डीजल की कीमतों व आज फसल के खरीद के दामों में बहुत अंतर आ गया है। इतनी महंगाई के दौर में फसलों के उचित मूल्यों का न मिलना ही किसानों के लिए गहरी चिंता काविषय है। मगर इस का अर्थ यह नहीं कि खेती से मुनाफा कमाना संभव नहीं है। आवश्यकता है कि किसान खेती को वैज्ञानिक व आधुनिक तरीके से करें।
कम पानी के प्रयोग द्वारा उन्नत खेती कैसे की जा सकती है?
पानी की किल्लत क्षेत्रिय नहीं अपितु एक वैश्विक समस्या है। आज सभी नदियां सूखती जा रही हैं। मौसम में भी वर्षा की अत्याधिक कमी आ गई है। इसलिए किसानों को चाहिए की वे क्षेत्रानुसार संतुलन बनाकर अलग अलग स्थानों पर भिन्न-भिन्न मात्रा में पानी के प्रयोग वाली फसलें लगाएं। फसलों में विविधता के द्वारा ही पानी की कमी की समस्या से निजात पाया जा सकता है।
खेती को बेहतर बनाने के लिए किसान को किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
सर्वप्रथम तो यह अति आवश्यक है कि किसान अपने नजदीकी खेती-बाड़ी विश्वविद्यालय से प्रशिक्षण लें। रबी और खरीफ के मेलों में भी किसानों को अवश्य जाना चाहिए। इससे वे नए किस्म के बीजों व तौर तरीकों से अवगत हो सकेंगे। समाचार पत्रों व अनेक पत्रिकाओं में विभिन्न नाम से किसान साहित्य प्रकाशित होता है। उसे भी जरूर पढना चाहिए। रेडियो स्टेशन व टी. वी. चौनल पर भी खेती संबधित अनेक कार्यक्रम आते हैं। जिन्हें देख या सुन कर किसान नई किस्म की खेती
का लाभ उठा सकते हैं। सरकार द्वारा प्रत्येक जिले में कृषि विज्ञान केन्द्र स्थापित किए गए हैं ताकि किसान यहां से भी अपनी समस्याओं का समाधान पा सकते हैं।
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