बुधवार, 29 सितंबर 2010

लोक कल्याण के नाम पर

लोक कल्याण के नाम पर

पश्चिमी प्रभाव में हमने सीखना शुरू कर दिया है कि कण्डोम साथ लेकर चलो ताकि एड्स से बचाव हो। सार्वजनिक स्थानों पर ऐसे अश्लील विज्ञापन देखने को मिल जाते हैं कि कण्डोम साथ लेकर चलो। क्या मायने हैं इसके ? भारतीयों की ऐसी पतित सोच तो कभी नहीं रही, पर हमें ऐसा बनाने का एक सोचा-समझा प्रयास चलता नज़र आ रहा है।

पश्चिमी जगत के लोग हर पल काम वासना पूर्ति के लिए मल-मूत्र त्याग से अधिक तत्परता से , कभी भी, कहीं भी की तरह तैयार रहते है। पर क्या भारत की ऐसी दुर्दषा कभी रही हैं? नहीं रही, इसीलिए हमारी ऐसी दुर्गति करने की योजनाएं और तैयारी करोड़ों नहीं अरबों रु खर्च करके देश भर में प्रारम्भ की गई है, और वह भी हमारे कल्याण के नाम पर। ये विनाशकारी योजनाएं एड्स के बचाव के नाम पर लागू की जा रही हैं। स्वदेशी-विदेशी स्वयंसेवी संस्थाएं इस कार्य को करने के लिए सरकारी खजाने और विदेशी सहायता से भारी भरकम अनुदान प्राप्त करती रही हैं।

यानी एड्स से बचाव के नाम पर हर बच्चे बूढ़े को हर पल काम वासना के सागर में गिराने का, पश्चिम के षड्यंत्र को लागू करने का काम सरकारी संरक्षण में खूब फल-फूल रहा है। चरित्र, संयम के स्वभाव में विकसित भारतीय समाज, विदेशी आकाओं की भावी योजनाओं में बाधक है। अतः उसे समाप्त करने का कुटिल प्रयास व्यापक स्तर पर सफलता पूर्वक चल रहा है। आपको कोई ऐतराज तो नहीं कि आप और आपके बेटे-बेटियाँ, बहुएं अपने साथ कण्डोम लेकर चलें? कृपया शर्म के कारण इस पर मौन रहकर सहयोगी न बनें। लाखों साल से संयम और चरित्र की प्रतिष्ठा को प्राप्त समाज की होने वाली इस दुर्दशा और विनाश के प्रयासों को हम और खुलकर अपना मत प्रकट करें।

भारतीय समाज की व्यवस्थाओं को तोड़ने वाले पूरी बेशर्मी से बात को कहते और प्रचार करते हैं और हम अपने संस्कारों से बंधे चुप-चाप सब सह जाते हैं। यह सब यूं ही चलने देना आने वाले विनाश की भूमिका बना रहा है। इसमें आपका मौन सहायक हो रहा है। अतः इस पर सोचें, इसे हम और जो उचित लगे वह कहें, पर कुछ करें जरूर। याद रखें कि मनुष्य की हर जरूरत से धन कमाना और उसके लिये उन्हें अति की सीमा तक भोगों को भोगने के लिए उकसाना, हमें पतन और विनाश की खाई में धकेलने वाला है।

‘कंण्डोम साथ लेकर चलने’ जैसे विज्ञापन देखकर सर -झुककर गुज़र जाने से काम नहीं चलेगा। बच्चों और युवाओं के कोमल मन को विकृत बनाने पाले इन कुप्रयासों का विरोध दर्ज करवाना एक बार शुरू तो करें, आप जैसे कइ लाग होंगे जो आपके साथ़ जुड़जाएंगे।

अन्यथा पूरी संस्कृति पतन के खाइ में गिरकर समाप्त होती जाएगी।

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