बुधवार, 29 सितंबर 2010

किसान विरोधी है भूमि अधिग्रहण अधिनियम

किसान विरोधी है भूमि अधिग्रहण अधिनियम

आजादी के 62 वर्षों बाद भी भारत का आम नागरिक,मजदूर-किसान अपने ही नेतृत्व तथा अपने ही द्वारा चुनी गई सरकारों के मनमाने पूर्ण रवैये का शिकार होकर बद से बदतर स्थिति में जीने को विवश है।विकास की अंधाधुंध दौड़ में किसानों की भूमि को अधिग्रहीत करके उन्हें भूमिहीन बनाने व पूंजीवाद का शिकार बनाने में कोई कोताही नहीं बरती जा रही है।राष्टपिता महात्मा गाँधी के सत्याग्रह आन्दोलन से ब्रितानिया हुकूमत की नींद हराम हो गई थी,क्रान्तिकारी विचारधारा के वाहकों ने भारत माता की गुलामी की बेडियां काटने में अपना सर्वस्व न्यौछावर किया।भारत-भूमि ब्रितानिया हुकूमत से,साम्राज्यवादी सोच से आजाद तो हो गई परन्तु अफसोस अंग्रेज परस्त काले-भूरे शासकों ने भारत के आम जनों का शोषण-उत्पीड़न बदस्तूर जारी रखा है।आम जन आज भी नौकरशाही के चक्रव्यूह में फंसा हुआ अपना दम तोड़ने को विवश है।भ्रष्टाचार को जीवन का अनिवार्य-आवश्यक अंग बना चुके तमाम नेताओं-नौकरशाहों ने जन विरोधी कृत्यों को करना बदस्तूर जारी रखा है। उ0प्र0 की राजधानी लखनउ से सटे जनपद बाराबंकी की तहसील फतेहपुर के पचघरा में उपमण्डी स्थल निर्माण के लिए किसानों की बेशकीमती उपजाउ कृषि भूमि का मनमाना अधिग्रहण आम जन विरोधी,किसान हित विरोधी सोच का ज्वलंत उदाहरण है।किसान जिस संगठन से जुडे रहे उसके नेतृत्व ने ही उनका साथ छोड़ दिया,उनके साथ विश्वासघात किया,प्रशासन के पैरोकार बनकर किसानों के धरने को बिना उनकी सहमति के खत्म करने की घोषणा कर दी।लेकिन किसान अब भी अपनी कृषि योग्य भूमि के अधिग्रहण के विरोध में सत्याग्रह कर रहे। है।।अपने हक की लड़ाई लड़ने के लिए पचघरा के किसानों ने अब अपने खेत पर धरना देते रहने के बजाए विभिन्न संगठनों से सम्पर्क कर के संघर्ष में सहयोग मांगा है।भूमि अधिग्रहण से पीड़ित किसान अब अपने गाँव ,खेत,खलिहान से अपने हक को वापस लेने के लिए निकल पड़े हैं।नेतृत्व के छल व नौकरशाही के मनमाने पूर्ण रवैये के शिकार पचघरा के पीड़ित किसानों के दिलों में गुबार भरा है।अपनी ही भूमि पर सरकारी कब्जे की आशंका से ये किसान आक्रोशित है।।इन बेबस,छल के शिकार किसानों के दिलो-दिमाग में आग सुलग रही है।किसानों के इस संघर्ष मे। जनपद के तमाम किसान नेताओं व संगठनों ने अपना समर्थन दे दिया है।पचघरा के किसानों के द्वारा लड़ी जा रही हक की लड़ाई जन-संघर्ष में बदलती जा रही है। युग दृष्टा सरदार भगत सिंह जिन मजदूरों-किसानों को भारत की,क्रान्ति की वास्तविक शक्ति मानते थे,जिनकी तरक्की से ही वो भारत की तरक्की की कल्पना करते थे,आज वो मजदूर-किसान अपने हक से वंचित हैं।विभिन्न सरकारी योजनाओं के लिए मनमाने पूर्ण तरीके से अन्नदाता की जमीनों का अधिग्रहण करके विकास के नाम पर गरीब किसानों की आजादी पर,उनके अधिकारों पर हमला बोलना जारी है।यह हमारा अपना दुर्भाग्य है कि जो कानून ब्रितानिया हुकूमत ने वर्ष 1894 में ‘‘भूमि अधिग्रहण अधिनियम,1894‘‘पारित किया था,वर्ष 1947 में आजादी मिलने के बाद भी भारत सरकार ने किसान हित विरोधी इसी भूमि अधिग्रहण अधिनियम,1894 को अंगीकार किया।भारत की ग्राम्य व्यवस्था को खस्ताहाल करने के घृणित उद्देश्य से बनाये गये इस भूमि अधिग्रहण अधिनियम,1894 में आजादी के बाद कुछ संशोधन भी किये गये परन्तु किसानों की भूमि का मुआवजा निर्धारण की प्रक्रिया वही बनी रही।ब्रितानिया हुकूमत का यह काला कानून आज भी अन्नदाता की छाती पर मूंग दरने का कार्य कर रहा है।मुआवजे के निर्धारण के तौर-तरीके,मापदण्ड़ तथा प्रशासनिक कार्यशैली अब तो ब्रितानिया हुकूमत को भी मात देने लगी है।किसान अपनी भूमि नहीं देना चाहते हैं तो भी सार्वजनिक उद्देश्य व विकास के नाम पर कृषि भूमि का अधिग्रहण लोकतन्त्र को भयावह राह पर ले जाने वाला साबित होगा।आज किसानों की भूमि तरक्की व विकास का वास्ता देकर हड़पने की साजिश को समझने की जरूरत है। कृषि योग्य उपजाउ भूमि पर उपमण्ड़ी स्थल निर्माण से विकास का दावा करने वालों को यह समझना होगा कि यदि किसानों की भूमि मनमाने तरीके से शासन सत्ता के बल व नेतृत्व द्वारा विश्वासघात के कारण ले ली जाती है,तो वर्तमान शासकीय व्यवस्था के खिलाफ इनके मन में जो बीज रोपित हो गया है,वो कालांतर में कितना बड़ा वट वृक्ष बनेगा।किसी तरह मेहनत मशक्कत करके,कड़ी दोपहरी में,भीषण सर्दी व बरसात में सपरिवार अपने परिवार व समाज का उदर-पोषण करने वाले इन गरीब,बेबस पचघरा के किसानों के जीवन स्तर को यदि सरकारें सुधार नहीं सकती तो इनसे इनकी अपनी भूमि जबरन अधिग्रहीत करने का हक भी सरकारों को नहीं है।पीड़ित किसानों ने अपना संगठन ‘‘पचघरा भूमि अधिग्रहण विरोधी मोर्चा‘‘ गठित करके अपने हक एवं जनअधिकारों की रक्षा का संकल्प ले लिया है।

किसानों के मसीहा चौधरी चरण सिंह का साफ कहना था कि,‘‘देश की तरक्की का रास्ता खेत व खलिहान से होकर गुजरता है।‘‘आज किसानों के खेत पर सरकारों की कुदृष्टि पड़ चुकी है।बंजर जमीन को कृषि योग्य बनाने के नाम पर लाखों नहीं करोंड़ों व्यय करने वाली सरकारें कंक्रीट के जंगल को तैयार करने के लिए कृषि भूमि का चयन करके जनता के पैसों की बर्बादी कर रहीं हैं।विकास के नाम पर बनने वाली इमारतों का निर्माण बंजर भूमि पर,सरकारी भूमि पर होना चाहिए।दबंगों व भूमाफियाओं के कब्जे की सरकारी जमीन पर कब्जा लेने में नाकाम प्रशासन अपनी सारी ताकत पूरे देश-समाज का उदर पोषण करने वाले अन्नदाता किसानों को धमकाने-लठियाने व ऐन केन प्रकारेण उनकी भूमि पर इमारतों को बनाने में लगा देता है।विकास के धन की लूट व बन्दरबाट के फेर में देश को ज्वालामुखी के मुहाने पर ले जाने का कार्य भ्रष्टाचार में लिप्त शासन के जिम्मेदारों द्वारा किया जा रहा है।सादगी की प्रतिमूर्ति,ईमानदारी के प्रतीक लाल बहादुर शास्त्री ने देश की सीमा पर तैनात जवान और मेहनतकश किसान के सम्मान में ही ‘‘जय जवान-जय किसान‘‘ का उदघोष किया था।औद्योगीकरण के भयावह खतरों को समझते हुए ही महात्मा गाँधी स्वदेशी,स्वावलम्बन व पुरातन ग्राम्य संरचना की स्थापना पर बल देते थे।डा0 राममनोहर लोहिया ने समाजवादी परिवर्तन को सफल बनाने के लिए जेल,वोट और फावड़ा,इन तीन संघर्षों पर विशेष बल दिया था।डा0 लोहिया की सोच जेल,वोट और फावड़े में फावड़े का मूल अर्थ समाज के आखिरी आदमी के चेहरे पर आत्मविश्वास की चमक पैदा करना है।समस्त संघर्ष के आक्रोश को रचनात्मक उत्सर्ग के लिए तत्पर रहने की इच्छा शक्ति पैदा करना अनिवार्य मानते थे-डा0 लोहिया। गाँधी के सच्चे अनुयायी डा0लोहिया तात्कालिक अन्याय का पुरजोर विरोध करते थे और चाहते थे कि उनके लोग भी करे।।आज पचघरा के इन संघर्षरत् किसानों के साथ हो रहे अन्याय,उत्पीड़न के खिलाफ संघर्ष की अगुआई करने यदि डा0लोहिया जीवित होते तो अब तक पहुँच गये होते।आज पचघरा के किसान डा0लोहिया के सिद्धान्त को मानते हुए अन्याय के खिलाफ प्रतिकार कर रहें हैं। लोहिया के लोगों को खामोशी तोड़कर भूमि अधिग्रहण के खिलाफ संघर्ष करना चाहिए।

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