रविवार, 26 सितंबर 2010

इस तरह के अगर एक लाख पम्प लगे जा सकें तो हर साल करीब २५ करोड़ लीटर डीजल बचाया जा सकता है !

कानपुर के कप्म्यूटर उद्दमी विवेक चतुर्वेदी देश में किसानों की आत्महत्याओं से बहुत चिंतित थे. यह बात २००४ की है . इसी बीच उनकी मुलाकात सहारा में स्थित टेक्नोलोजी के बड़े संसथान एचबीटीआई के प्रो. गणेश बागडिया से हो गई. बातों बातों में ही उनकी और से सुझाव आया की इतनी चिंता है किसानो के लिए तो पहले किसान बनो महसूस करो फिर रास्ता खोजो. वहाँ चतुर्वेदी के पास के ही उन्नाव जिले के परियार गाँव में चटपट २० बीघा खरीद ली. कहाँ तो कंप्यूटर और कहाँ हल बैल, जुताई-मढ़ाई की कसरत. तय किया की अब बाजार से खाद बीज कुछ नहीं लाएँगे. सिंचाई के लिए डीजल भी नहीं ? यही उधेड़बुन उन्हें कानपुर की "भौंती गौशाला" ले गई, जहाँ बैलो से सिंचाई यंत्र होने की बात उन्होंने सुनी. तकनीकी चिंताओं की वजह से वाह सिर्फ शो-पिस भर था. लेकिन चतुर्वेदी के परियार के कारीगर दोस्त सुल्तान और पुरुषोत्तम को उसमे सम्भावना दिखाई दी. डेढ़ साल तक चले कई प्रयोग - जिन पर १० लाख खर्च आया - आखिर कामयाब रहे और खेतों में आसानी से चलने वाला वतार्पंप बना लेने वे सफल हुए. इस स्क्रू पम्प को चलने के लिए ना तो बिजली की जरुरत है और ना ही डीजल की बैलो को चलते हुए इससे १५० फुट गहरे पानी को भी एक घंटे में २५००० लीटर पानी खीचा जा सकता है. यानि ७-८ घंटे में आराम से एक एकड़ की सिंचाई परियर की लगभग ४० एकड़ जमीन अब इस तरह से पम्प से ही पानी पिने लगी है. कारीगरों ने पुराने पम्प में आखिर क्या बदलाव किये ? सुल्तान के शब्दों में "बैलो से यह पम्प १ मिनट में २-३ चक्कर ही लगता था लेकिन हमने एक गिअर बोक्स तैयार किया, जिससे यह रफ़्तार ७०० चक्कर तक पहुच गई एक खास स्क्रू की वजह से गहरे में भी पानी खींचने में समस्या नहीं होती है" यह पम्प बैलो के थकने तक लगातार काम कर सकता है. मजे की बात है की इसे तैयार करने वाले सुल्तान और पुरुषोत्तम दोनों निरक्षर है. कानपुर और दिल्ली आई आई टी के विशेषज्ञ भजी इस पम्प की कार्यप्रणाली को देखकर हैरत में थे, अतंतः आई आई टी के ही तिन प्रोफेसरों की एक टीम बने, जो अब इस यंत्र को और बेहतर बनाने पर काम कर रही है उत्तर प्रदेश सरकार के एक उपक्रम दीनदयाल उपाध्याय राज्य विकास संसथान ने भी इसकी पूरी कार्यप्रणाली समझने के बाद २००७ में ऐसे ३० पम्प खरीदें. संसथान के निदेशक आर. एन. त्रिवेदी कहते हैं, " इस तरह के अगर एक लाख पम्प लगे जा सकें तो हर साल करीब २५ करोड़ लीटर डीजल बचाया जा सकता है और खेतीबाड़ी में बैलो की उपयोगिता और बढ़ेगी वे कटने से बचेंगे, नतीजन गोबर मिलने से खाद की जरुरत को भी प्राकृतिक ढंग से पूरा किया जा सकेगा. "महाराष्ट्र के वर्धा और नागपुर जिनलो में भी इस किसान बैल पम्प का उपयोग कर रहे हैं

1 टिप्पणी:

  1. mujhe is pump ko apne khet par lagwana hai kitna kharcha aayega aur lagaane balon ka sampark sutra bhi dene ka kashta karen.
    Sourabh Kumar Geda 9718505558

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